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इतिहास

विश्वविद्यालय के बारे में

भारत में संगीत शिक्षा का इतिहास प्राचीन काल से है जब समस्त प्रकार की शिक्षाएं, महान संतों और ऋषि-मुनियों के गुरुकुलों व आश्रमों में दी जाती थी। एक क्रमबद्ध, समयबद्ध संरचना में शिक्षा के आधुनिक संस्थागतकरण की प्रणाली उन्नीसवीं सदी के मध्य से ब्रिटिश शासकों द्वारा शुरू की गई थी। बीसवीं सदी की शुरुआत में भारतीय संगीत शिक्षा को इस प्रणाली में लाया और संरचित किया गया। इस सदी में भारतीय संगीत के दो दिग्गजों यथा पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर जी एवं पंडित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने संगीत शिक्षा व प्रशिक्षण प्रणाली के इस संस्थागतकरण की दो मजबूत एवं समानांतर परंपराओं का नेतृत्व और विकास किया। 1926 में, पं. विष्णु नारायण भातखण्डे ने राय उमानाथ बाली एवं राय राजेश्वर बाली व अवध की सांस्कृतिक रूप से जीवंत रियासत लखनऊ के अन्य संगीत संरक्षकों व दिग्गजों की मदद व सहयोग से लखनऊ में एक संगीत विद्यालय की स्थापना की। इस संस्था का उद्घाटन अवध के तत्कालीन गवर्नर सर विलियम मैरिस ने किया था और उनके नाम पर इसका नाम "मैरिस कॉलेज ऑफ़ म्यूज़िक" रखा गया था।

26 मार्च 1966 को, उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने इस कॉलेज को अपने नियंत्रण में ले लिया तथा इसके संस्थापक के नाम पर इसका नाम बदलकर "भातखण्डे कॉलेज ऑफ़ हिंदुस्तानी म्यूज़िक" कर दिया। राज्य सरकार के अनुरोध पर, भारत सरकार ने 24 अक्टूबर, 2000 को एक अधिसूचना द्वारा इस संस्थान को "डीम्ड विश्वविद्यालय" घोषित किया। भातखण्डे संगीत संस्थान सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के तहत पंजीकृत है और एक स्वायत्त संस्थान है। 2 नवंबर 2002 को उत्तर प्रदेश के माननीय राज्यपाल ने भातखण्डे संगीत संस्थान डीम्ड यूनिवर्सिटी का अध्यक्ष बनने की सहमति दी। भातखण्डे संगीत संस्थान डीम्ड विश्वविद्यालय का अतीत में अनुकरणीय उपलब्धियों के साथ एक बहुत ही गौरवशाली इतिहास रहा है। इस संस्थान के पूर्व छात्र दुनिया भर में अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए लोग संगीत शिक्षा व प्रदर्शन के क्षेत्र में सक्रिय हैं। अनूप जलोटा, दिलराज कौर, मालिनी अवस्थी, डॉ. पोर्निमा पांडे ऐसे कई पूर्व छात्रों में से हैं। भातखण्डे संगीत संस्थान डीम्ड विश्वविद्यालय यूरोप, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश और मध्य और पूर्वी एशियाई देशों के संगीत साधकों के लिए भी एक बहुप्रतीक्षित संस्थान है।