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विभाग

विश्वविद्यालय के विभाग

भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय भातीय कला की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन, अध्यापन और अनुसंधान में सक्रिय है। यह स्नातक (बी.पी.ए.) और परास्नातक (एम.पी.ए.) कार्यक्रमों को संचालित करता है, जो छात्रों को कलात्मक शिक्षा और उनके विकास में सहयोग करता है। इसके अलावा, इच्छुक कलाकारी और बच्चों को भारतीय संगीत के प्रति अभिरूचि उत्पन्न करने के लिए विश्वविद्यालय अंशकालिक डिप्लोमा/विशिष्ट पाठ्यक्रम/कार्यक्रमों को भी संचालित करता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत और नृत्य में दो वर्षीय डिप्लोमा कार्यक्रम क्रमशः प्रवेशिका, परिचय, प्रबुद्ध और पारंगत के रूप में आठ वर्षों तक संचालित किए जाते हैं। इसके अतिरिक्त ध्रुपद-धमार, ठुमरी-दादरा, सुगम संगीत, हारमोनियम/सिंथेसाइजर, लोक नृत्य में दो वर्षीय डिप्लोमा कार्यक्रम, और लोक संगीत और ढोलक में एक वर्षीय डिप्लोमा कार्यक्रम भी संचालित किए जाते हैं। विश्वविद्यालय अपने पी.एच.डी. कार्यक्रम के माध्यम से संगीत के क्षेत्र में अनुसंधान के अवसर प्रदान करता है।

गायन संगीत विभाग

पं. विष्णु नारायण भातखण्डे ने 1926 में मैरिस काॅलेज आफ हिन्दुस्तानी म्यूज़िक की स्थापना के साथ ही गायन विभाग की स्थापना की। उनके साथ-साथ, कई ख्यातिप्राप्त संगीतज्ञ भी विभाग से जुड़े, जिन्होंने इसके विकास और संवर्धन में योगदान दिया। 1927 में पद्मभूषण डाॅ. श्रीकृष्ण नारायण रातनजंकर, श्री गोविन्द नारायण नातू, उस्ताद छोटे मुन्ने खान, बाबा नसीर खान, और श्री बी.एस. पाठक भी विभाग में सम्मिलित हुए। उनकी विशेषज्ञता और समर्पण ने विभाग के पाठ्यक्रम और शिक्षा के उन्नत स्तर को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कालांतर में पद्मभूषण बेगम अख्तर, डाॅ. सुरेंद्र शंकर अवस्थी, पं.हरिशंकर मिश्र, पं. गणेश प्रसाद मिश्र, प्रोफेसर कमला श्रीवास्तव, श्री के.के. कपूर, श्री धर्मपाल बड़प्पगा, श्री वी.एम. लेले, प्रो. प्रेम सिंह किनोत और डाॅ. तेज सिंह टाक ने संगीत विभाग के विकास और संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इनमें से प्रत्येक व्यक्ति भातखण्डे संस्कृति विश्वविद्यालय में छात्रों की प्रतिभा को निखारने के लिए अपनी अनूठी अंतर्दृष्टि और शिक्षण पद्धति का प्रयोग किया।

स्वरवाद्य विभाग (वाद्य संगीत)

1926 में हिंदुस्तानी संगीत के मैरिस काॅलेज आफ हिन्दुस्तानी म्यूज़िक के साथ स्वरवाद्य संगीत विभाग की स्थापना हुई। इस महत्वपूर्ण अवसर से प्रख्यात सरोद वादक उस्ताद सखावत हुसैन खान और सितार वादक उस्ताद यूसुफ अली खां विभाग के एक अभिन्न अंग बन गए। अगले वर्ष सितार में उस्ताद इलियास खान शिक्षक के रूप में सम्मिलित हुए। वायलिन में पद्मभूषण प्रो. वी.जी. जोग, श्री दाऊ जी गोस्वामी तथा प्रो. गोपाल चन्द्र नन्दी, सितार में श्री नन्द लाल पाठक, श्री नवीन चंद्र पंत एवं उस्ताद तजम्मुल खान, सरोद में पं. सुप्रभात पाल, बांसुरी के बेनी प्रसाद त्रिपाठी और सांरगी के पं. कृष्ण कुमार मिश्र एवं पं. विनोद कुमार मिश्र जैसे विद्वान कलाकारों के अमूल्य योगदान के कारण विभाग समृद्ध हुआ। कालांतर में विभाग में हवाईयन गिटार, हारमोनियम तथा की बोर्ड विषय को सम्मिलित कर विस्तार किया गया।

तालवाद्य विभाग

लखनऊ घराने के प्रसिद्ध तबला वादक एवं खलीफा उस्ताद आबिद हुसैन खान साहब द्वारा वर्ष 1926 में विभाग की स्थापना की गई। वर्ष 1927 में प्रसिद्ध पखावज वादक पं. सखावज वादक पं. सखा राम मृदंगाचार्य भी इस विभाग में शामिल हुए। पद्मभूषण उस्ताद अहमद जान थिरकवा ने भी अपनी उपस्थिति से विभाग की शोभा बढ़ाई। वर्ष 1966 में बनारस घराने के प्रख्यात तबला वादक पं. रंगनाथ मिश्र एवं शीतल प्रसाद मिश्र ने इस संस्था में सहायक प्राध्यापक के रूप में सेवाएं प्रदान की। तदोपरान्त सहायक प्राध्यापकों के रूप में पं. रामकुमार शर्मा एवं पं. रमाकांत पाठक क्रमशः तबला और पखावज नियुक्त हुए। कालांतर में प्रो. सुधीर कुमार वर्मा ने दायित्वों का निर्वहन किया। 2001 में डीम्ड विश्वविद्यालय बनने के पश्चात् पं. रविनाथ मिश्र और प्रो. मुकुंद भाले ने सेवाएं प्रदान की।

नृत्य विभाग

नृत्य विभाग की स्थापना 1936 में पं. राम लाल कथिक द्वारा की गई। कथक नृत्य के प्रसिद्ध प्रोफेसर मोहनराव कल्याणपुरकर के मार्गदर्शन में 1939 से 1971 तक विभाग विकसित हुआ। कथक नृत्य में पद्मश्री डाॅ. पुरू दाधीच. श्रीमति सुनीति कैकिनी, प्रो. पूर्णिमा पांडे, प्रो. कुमकुम धर और श्री सुभाष दीक्षित के उल्लेखनीय योगदान से विभाग का विस्तार हुआ। इसके अतिरिक्त, सुश्री पद्मा सुब्रमण्यम और वासंती सुब्रमण्यम ने भारतनाट्यम में अपना विशेष योगदान दिया। गुरू बनमाली सिन्हा ने मणिपुरी नृत्य में उल्लेखनीय कार्य किया। श्री मुकुंद दास भट्टाचार्य ने अपनी रचनात्मक दृष्टि से लोक नृत्य विभाग को समृद्ध किया।